ना जप तप ना साधन कोई
ना जप तप ना कोई साधन नहीं जानूँ आराधना
मुख से श्यामाश्याम ना निकले मन में भरी है वासना
युगल विमुख हूँ मैं मतिहीना कैसा जीवन मेरा
दुःख की काली घनघोर रात्रि है चारों और अँधेरा
अपने प्रेम की भिक्षा दे दो नहीं मेरे मन की कामना
ना जप तप ना कोई साधन नहीं जानूँ आराधना
मुख से श्यामाश्याम ना निकले मन में भरी है वासना
रैन दिवस रहूँ विषयन में युगल नाम नहीं आवे
जैसे छोड़ अमृत का प्याला कोई विष का भोग लगावे
कैसे निहारूँ प्रियालाल तोहे मन में नहीं आपकी सुख साधना
ना जप तप ना कोई साधन नहीं जानूँ आराधना
मुख से श्यामाश्याम ना निकले मन में भरी है वासना
माया ने मुझको भरमाया हरि हरि कभी ना गाया
मन को रस हुआ विषय विकार में नाम में सुख ना पाया
व्यर्थ गवाया मानव जन्म ये मन में ना जागी भावना
ना जप तप ना कोई साधन नहीं जानूँ आराधना
मुख से श्यामाश्याम ना निकले मन में भरी है वासना
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