घुंघरू 7
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ललिता सखी को श्री प्रिया जू की नुपुर मिल जाती है। वो झट से नुपुर उठा लेती है। ये तो मेरी स्वामिनी जू मेरी किशोरी जू की नुपुर है। ललिता सखी वो नुपुर लेकर किशोरी जी के पास आ जाती हैँ और कहती हैँ प्यारी जू आपकी नुपुर मिल गयी है अभी आप आनन्दित हो जाइये। लेकिन श्री प्रिया जू तो नुपुर के साथ जुड़े श्यामसुन्दर के विरह भाव में डूब चुकी हैँ। प्रियतम की स्मृति में खोई हुई हैँ।
विरह वेदना से प्रतिपल
आँखें झरती हैं प्रियतम
व्याकुलता अति भारी
मन में भरती है प्रियतम
छोड़ गए सखी आज मोहे
कहती रहती हैं प्रियतम
व्याकुलता पिया मिल्न की
करती रहतीं हैं प्रियतम
दूर देस बसे पिया मेरे
डरती रहती हैं प्रियतम
आओ मोहना देर भई बहुत
कहती रहती हैं प्रियतम
कभी अपने चारों और ही
तुमको देखा करती हैं प्रियतम
प्रियतम से ही प्रियतम की बातें
करती रहती हैं प्रियतम
प्रियतम ही हैं सर्व रूप में
अनुभव करती हैं प्रियतम
देख देख प्रियतम को ही
सुख से भरती रहती हैं प्रियतम
पुनः सहसा विरह वेदना
घेरा करती है प्रियतम
छोड़ गए हाय प्रियतम मेरे
रुदन करती है प्रियतम
पल में मिल्न पल में विरह
कैसी ये प्रीती है प्रियतम
नित्य नव मिल्न नित्य विरह
ये बाँवरी जीती है प्रियतम
ललिता जू नुपुर उठा कर किशोरी जू के चरणों में पहना देती हैँ। नुपुर को श्यामसुन्दर के करों का स्पर्श प्राप्त है इसका स्पर्श होते ही प्रिया जू को श्यामसुन्दर की अनुभूति होने लगती है। जैसे उनकी देह में प्राणों का संचार होने लगता है।
श्री जू ललिता जू को ही प्रियतम श्यामसुन्दर समझ कर आलिंगन कर लेती हैँ। उनको सखी नहीं प्रियतम श्यामसुन्दर ही प्रतीत हो रहे हैँ और उन्मादिनी हो उन्हीं के प्रेम रस में डूबने लगती है।
आज पिया मोहे अंग लगाय लीयो
हाय सखी मेरो सुधि बिसराय दीयो
पीर बिरह की सखी बड़ो भारी
पिया मिलन ते मैं बलिहारी
पिया मोहे आन हिय सों मिलाय लीयो
आज पिया.......
तेरी छुअन से सिहर गयी मैं पिया
अंग लगायो संवर गयी मैं पिया
प्रेम सों पिया सुहागिन बनाये दीयो
आज पिया........
अंग अंग रस पिया अपनों भर दीयो
ऐसो नेह लगा बाँवरी कर दीयो
मोहे पिया नित सजनी बनाइयो
आज पिया मोहे अंग लगाय लीयो
हाय सखी मेरी सुधि बिसराये दीयो
इधर नुपुर भी अपनी स्वामिनी जू के भाव में बहने लगती है। नुपुर भी अत्यधिक आनन्दित हो रही है। नुपुर स्वयम् को सौभाग्यशाली अनुभव कर रही है जिसके स्पर्श से श्री किशोरी जू प्रियतम का स्पर्श अनुभव कर रही हैँ और विरह पीड़ा की जगह प्रेम आनन्द में डूबती जा रही है। नुपुर के हृदय की विरह पीड़ा भी समाप्त हो चुकी है और युगल प्रेम से आनन्द हो रहा है। नुपुर के घुंघरू भी कृष्ण कृष्ण की नाम ध्वनि करने लगते हैं और श्री प्रिया जी का आनन्द बढ़ने लगता है। नुपुर को पुनः पुनः अपनी स्वामिनी जू पर प्रेम उमड़ने लगता है यही उन्माद किशोरी जू को श्यामसुन्दर का बढ़ता हुआ प्रेम प्रतीत होने लगता है । नुपुर के घुंघरू और ऊँची ध्वनि में कृष्ण कृष्ण करते हैँ और श्री प्रिया जू भी कृष्ण कृष्ण करती हुईं ललिता सखी को भुजा पाश में बांध लेती हैँ। आहा ! स्वामिनी जू के आनंदित होने से हर और आनन्द की लहर दौड़ने लगती है। श्री प्रिया जू की इस प्रसन्नता पर हर कोई बलिहार होने को उत्कण्ठित है।
क्रमशः
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