युगल प्रीत बिन
युगल प्रीत बिनु व्यर्थ ये जीवन होय स्वास् होय बेमोल ।
कबहुँ युगल नाम सिमरेगो समय गवाय दियो अनमोल ।।
कबहुँ श्यामाश्याम न मनावे कैसो युगलवर रीझें ।
मन में कल्मष विकार होय भारी कैसो प्रेम रस भीजे ।।
हाय हाय मेरे युगल प्राणधन दूर कीजो चरणन ते ।
कोऊ प्रेम जप तप ना होवै विमुख रहूँ भजन ते ।।
कैसो कहूँ युगलधन मेरो अबहुँ मेरी ओर निहारो ।
प्राण ना निकलत पाषाण हिय मेरो सन्मुख खड़ी तिहारो ।।
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