घुंघरू 3
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राधा राधा नाम से मेरो आँचल भर दीजो !
राधा नाम महाधन इस धन को सञ्चित कर लीजो !!
कभी रुके ना जिव्हा मेरी राधा राधा गाने से !
जीवन मेरो सफल भए राधमयी हो जाने से !!
अपने नाम की भिक्षा दीजो और कछु नहीं अभिलाष मेरी !
नाम परमधन बने मेरा ही पूर्ण करदो आस मेरी !!
हूँ निर्धन मैं राधे किशोरी ऐसा मोहे वर दीजो !
नाम रहे सदा मन अंदर ऐसी कृपा कर दीजो !!
कान्हा जू आज श्यामा जू के लिए नुपुर लेकर आये। आहा ! कितनी सुंदर नुपुर है । आज तो इस नुपुर के भाग्य खुल गए हैँ। ये श्यामा जू के चरणों का सौंदर्य क्या बढ़ावेगी आज इसका सौंदर्य सौभाग्य उदय हो गया है। हाय ! प्यारी जू के चरणों के स्पर्श होने का भाव ही आह्लादित कर देता है इसे तो आज से प्यारी जू के चरणों में ही रहना है। इस नुपुर में लगे छोटे छोटे घुंघरू ही कितने उन्मादित हो रहे हैँ। एक तो प्रियतम कान्हा जू का स्पर्श किये ही ये नुपुर उन्मादी हो गयी है ऊपर से श्री चरणों में समर्पित होने की आशा। आहा ! एक एक घुंघरू में उन्माद हो रहा है। श्री जू के चरणों का स्पर्श । उनके चरणों में वास । आहा ! अपनी स्वामिनी जू को ये नुपुर कैसे रिझाएगी। नुपुर ने अपने एक एक घुंघरू को सहेज रखा है जैसे। कोई भी घुंघरू ज्यादा उन्मादी होकर कहीं नुपुर से छूट तो नहीं जायेगा। नुपुर ने हर घुंघरू हर मोती को अपनी जगह व्यवस्थित रहने को कहा है। नुपुर कहती है मैंने तो सब मोती और घुंघरुओं को सहेज कर रखा है। स्वामिनी जू को अर्पित होने के लिए।
नुपुर घुंघरुओं से कहती है तुम श्री जू के चरणों में स्थान पाओगे। तुम अपने भाग्य के कारण या अपने किसी बल से श्री चरणों का स्पर्श नहीं पाओगे। ये तो स्वामिनी जू की सब पर अनन्य कृपा है जो नुपुर में सबको धारण करेंगीं। तुम श्री जू का सुख साधन ही बनो। आज से तुम अपनी ध्वनि भी श्री जू की प्रसन्नता के लिए करोगे। हमारी प्यारी जू को कृष्ण कृष्ण नाम से लगाव है। लगाव क्या उनका तो तन मन धन प्राण रोम रोम ही कृष्ण हैँ। तुम सब अपनी ध्वनि 'छन छन ' को छोड़ कर 'कृष्ण कृष्ण 'ही करो जिससे हमारी स्वामिनी जू को प्रसन्नता हो।
कान्हा जू अपने करों में पकड़ी हुई नुपुर की मोतियों और घुंघरुओं से वार्ता सुन अति आनन्दित होते हैँ। कान्हा जू जिस नुपुर को छू लें और वह प्यारी जू के सुख का साधन न हो ये भी सम्भव नहीं है। कान्हा जू स्वयम् ही अपना मन एक एक मोती एक एक घुंघरू में जोड़ देते हैँ ताकि उन्हें प्यारी जू के चरणों का स्पर्श सदैव प्राप्त होता रहे।
श्याम पहनाए दीयो नुपुर श्यामा पग मणि मोतिन वारी !
मैं घुंघरू तोरी नुपुर को टूट न जाऊँ श्यामा प्यारी !!
दूर नहीं राखो मोहे चरणन सों नहीं कोई मणि माणिक श्यामा !
तेरो चरणन की रज मिल जावे तबहुँ कहीँ मोहे होय बिसरामा !!
पात्र कुपात्र तुम कब देखी सबको एक समान दुलारा !
शरण पड़ा जो स्वामिनी तेरे तिनको प्रेम दृष्टि सों निहारा !!
मोहे भरोसो स्वामिनी जू को राखो मोहे निज चरणन प्यारी !
चरण तेरे ही ठौर मेरी श्यामा तुम लाडली प्राणन प्यारी !!
अभी एक घुंघरू के मन में ये भाव होते कि ये मोती मणियाँ तो सच में अमूल्य हैँ। ये तो श्री चरणों के स्पर्श के योग्य हैं । इनकी जन्म जन्मांतर की साधना ने ही इन्हें ऐसे अमूल्य मोती मणि में परिवर्तित किया है ताकि नुपुर इनको धारण करके अपना और इन सबका सौभाग्य बना सके। नुपुर भी किशोरी जू की एक सखी ही है जो सदा से उनके चरणों में रहना चाहती है। नुपुर के मन की कोई इच्छा को श्री जू कभी पूरा नहीं करें ये तो सम्भव नहीं है। अनन्त कोटि ब्रह्माण्डों की स्वामिनी जू श्री किशोरी जी जिनके चरणों का स्पर्श पाने को ब्रह्मा विष्णु शिव और सभी देवी देवता लालायित रहते हैँ उनको जप तप साधना से कहाँ प्राप्त किया जा सकता है। ये तो श्री स्वामिनी जू की करुणा और स्नेह है नुपुर से जो उसके साथ लगा हर माणिक मोती यहां तक कि घुंघरू उन्मादी हो चुके हैँ। अभी ये घुंघरू नुपुर के संग ही श्री चरणों में रहना चाहता है।
क्रमशः
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