राख लेहो स्वामिनी

राख लेहो स्वामिनी जू मोहे अपनी कीजो ।
चरण पखारूँ सेज सजाऊँ मोहे सेवा दीजो ।।

यमुना सों जल भरि भरि लाऊँ सेवा मोहे लगाओ ।
रति मिले स्वामिनी चरणन की ऐसो मन को चाओ ।।

तेरो महलन की करूँ बुहारी नित नित कुञ्ज सजाऊँ ।
युगल जोरि नित केलि करे मैं सेवा को सुख पाऊँ ।।

श्यामा मोहे दासी कीजो रख लीजो चरणन माहिं ।
तुम सों दयाल स्वामिनी मेरो और कोई जगत में नाँहि ।।

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