प्रियतम बिनहुँ काहे न निकसत प्राण

प्रियतम बिनहुँ काहे ना निकसत प्राण
ओ विधना काहे दियो स्वास् मोहे या घट होय मसान
प्रियतम बिनहुँ काहे ना निकसत प्राण

जगत से मोह काहे लगावे मनवा
पीर हिय को ही पावे तू मनवा
बिसर गयो तोहे प्राणधन तेरो भर्मित भयो अज्ञान
प्रियतम बिनहुँ काहे ना निकसत प्राण
ओ विधना काहे दियो स्वास् मोहे या घट होय मसान

काहे तू दम्भ कियो अति भारी
बिन प्रियतम नाँहि भयो दुखारी
अबहुँ प्रियतम जाय मना लेह नाथ तेरो करुणानिधान
प्रियतम बिनहुँ काहे ना निकसत प्राण
ओ विधना काहे दियो स्वास् मोहे या घट होय मसान

प्रियतम प्रेम बिनहुँ व्यर्थ होय जीवन
प्रेम ना होय कबहुँ तेरो सांचो धन
रचयो जगत माँहि आडम्बर भारी होय मान विष को समान
प्रियतम बिनहुँ काहे ना निकसत प्राण
ओ विधना काहे दियो स्वास् मोहे या घट होय मसान

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