सखी री

सखी री !
कौन विधि साँवरो रीझै
हाय री !
कबहुँ मोहे अपनो कीजै

जाने ना सखी री प्रेम की बतियाँ
पियु बिनहुँ काटे कटत ना रतियाँ
कालरात्रि घनघोर श्यामल कबहुँ दरसन दीजै
सखी री !
कौन विधि साँवरो रीझै

कबहुँ विरह की पीर मिटे री
कबहुँ साँवरो आन मिले री
व्याकुल रैन दिना हिय मेरो कैसो धीर धरीजै
सखी री !
कौन विधि साँवरो रीझै

मुझ बिरहन की सुधि लो नाथा
तुम बिन मोहे कछु ना सुहाता
खारो लागे जीवन मेरो तुम बिनहुँ स्वास् ना लीजै
सखी री !
कौन विधि साँवरो रीझै
हाय री !
कबहुँ मोहे अपनो कीजै

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