दूर तेरी महफ़िल से

दूर तेरी महफ़िल से चले जाऊँ तो कैसे
हाल ए दिल अपना तुमसे छिपाऊँ तो कैसे

हर शै में होने लगता है कभी दीदार आपका
रूठते हो जब मुझसे तो मनाऊँ तो कैसे
दूर तेरी महफ़िल से .......

नहीं औकात मेरी इतनी कि तुमसे इश्क़ हो
पर तेरा इश्क़ है ऐसा मैं भुलाऊँ तो कैसे
दूर तेरी महफ़िल से.......

लगता है कभी जान निकल जायेगी तेरे बगैर
तू बता तेरी याद दिल से भुलाऊँ तो कैसे
दूर तेरी महफ़िल से .......

कभी दिल में आये खुद को तबाह कर दूँ
पर हूँ तेरी ये एहसास न भूल पाऊँ तो कैसे
दूर तेरी महफ़िल से.......

अपना बना कर मुझको बेखुद सा कर दिया
कहते हो होश में रह मैं आऊँ तो कैसे
दूर तेरी महफ़िल से चले जाऊँ तो कैसे
हाल ए दिल अपना तुमसे छिपाऊँ तो कैसे

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