घुंघरू 11
11
श्री जू प्रियतम की मधुर स्मृतियों में खोई हुई है। इतने में कान्हा आ जाते हैँ और श्री प्रिया जू की स्थिति देखते हैँ। श्री प्रिया जू को आलिंगन में लेते हैं। दोनों के प्रेम रस सुधा तृषित नेत्र एक दूसरे के चकोर हुए जाते हैँ। प्रियतम देखते हैं कि श्री जू ने सारे आभूषण उतार दिए हैँ। वो प्यारी जू को अपने हाथों से सजाना आरम्भ करते हैँ। श्री प्रिया जू तो प्रियतम के आनन्द से ही आनन्दित हैँ । वो प्यारी जू का जिस भी भांति श्रृंगार करें वो स्वयम् ही अपनी प्यारी जू का श्रृंगार होने को लालायित रहते है।
सखी अजहुँ पिया मोरे मेरो सिंगार कीन्हीं
हथ चूड़ी भाल बिंदी पावँ नुपुर पहिराए दीन्हीं
अधरन दीन्हीं रंगत मेरो अपनी प्रेम वारी
घागरा चोली प्रियतम अपनो प्रेम ते रंग डारी
सात रँग की चुनर डार प्रियतम मेरो करे सिंगार
देख देख मोहे प्रियतम प्यारे लेत सखी बलिहार
मैं अपने प्रियतम प्यारे की प्रियतम मेरो प्यारे
अंक भरत कबहुँ हाथ पकर मेरो प्रियतम मोहे निहारें
सतरँगी चुनर डार सखी घूंघट लियो निकार
पिया मेरो घूँघट हटावें रह्यो मेरी ओर निहार
कंप कंम्पाति देह रह्यो मेरी पिया मेरो कर पकरयो
अपने दोउन भुजा पाश माँहिं पिया मोहे ऐसो जकरयो
पिया पिया ही मुख ते निकल्यो पिया में रहूँ समाहिं
राख्यो मोहे ऐसो ही पिया कबहुँ छोड़त नाँहिं
मैं अपने प्रियतम प्यारे की प्रियतम मेरो प्यारे
अंक भरत कबहुँ हाथ पकर मेरो प्रियतम मोहे निहारें
प्रियतम बोलें सुन सजनी सुन मेरो हिय की बतियाँ
तेरे बिन सूनी सब सजनी काटे कटें ना रतियाँ
अधरन सों अधरन छुवत् सखी लाज मोहे अति आवे
कैसों निहारूँ पिया तेरो मुख लाज घेर मोहे जावे
चिबुक पकर मोहे पिया कहें हाय सजनी मोहे निहारो
नैन भरयो मैं काजल अजहुँ प्रियतम प्रीती वारो
मैं अपने प्रियतम प्यारे की प्रियतम मेरो प्यारे
अंक भरत कबहुँ हाथ पकर मेरो प्रियतम मोहे निहारें
इस प्रकार प्रिया प्रियतम प्रेम रस में निमग्न हैँ। आज आभूषण पुनः आनन्दित हो उठे हैँ। सभी आभूषणों को पुनः प्रिया प्रियतम का स्पर्श प्राप्त होता है। नुपुर और सभी घुंघरू भी इस प्रेम रस में डूब जाते हैं।
प्रातः समय प्रियतम प्रिया जू के चरण अपने करों में ले लेते हैँ और अपने पीताम्बर से पोंछने लगते हैं। श्री प्रिया जू के एक पावँ से नुपुर उतर कर पीताम्बर में अटक जाती है। प्रिया प्रियतम इस बात से अनभिज्ञ रहते हैँ। कुछ समय पश्चात प्रिया जू को अपने एक पावँ की नुपुर खो जाने की स्मृति होती है अवशय ही मेरी नुपुर श्यामसुन्दर ने ली होगी।
कुछ समय पश्चात श्यामसुन्दर को अपने पीताम्बर से प्रिया जू की नुपुर मिलती है। आज नुपुर की स्थिति तो और प्रेममयी हो रही है। एक तरफ तो वह प्रिया जू के चरणों में है और दूसरी और श्यामसुन्दर उसे अपने कर में लेकर प्रिया जू की स्मृति में खोये हैँ। आहा ! आज तो नुपुर और सभी घुंघरू पुनः पुनः प्रिया प्रियतम को कल रात्रि की मधुर स्मृति करवा रहे हैं। एक ओर नुपुर के घुंघरू श्यामसुन्दर की प्रसन्नता के लिए राधा राधा तो दूसरी ओर राधा जू की प्रसन्नता के लिए कृष्ण कृष्ण नाम ले रहे हैँ। आज प्रत्येक घुंघरू युगल प्रेम में उन्मत्त है।
क्रमशः
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