घुंघरू 6
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कल कल करती हुई कालिंदी के तट पर प्रियाप्रियतम आनन्द में मग्न प्रेम विभोर होकर नृत्य कर रहे हैं। सहसा श्री जू के चरण से एक नुपुर गिर जाती है। युगल तो इतने रसमग्न हैँ कि प्रिया जू को नुपुर छूटने का आभास नहीं हुआ परन्तु अपनी स्वामिनी जू के श्री चरणों से छूटी नुपुर की व्यथा कौन कहे। नुपुर का जीवन तो श्री प्रिया जू के चरणों में ही स्कार्थ है। वहीं कालिंदी तट पर पड़ी नुपुर युगल से दूर होने पर अति व्याकुल हो गयी है। ना ही प्रियतम का दर्शन न ही प्यारी जू की चरण सेवा । नुपुर के साथ जुड़े मणि माणिक घुँघरू सब विरह की पीड़ा अनुभव करते हैँ। हाय ! श्री चरणों के बिना ठौर कहाँ मिलेगी।
अपने प्रियतम कान्हा जू हेतु श्रृंगार करते समय प्रिया जू को अपने नुपुर के खो जाने का अनुभव होता है। हाय ! ये तो मेरे कान्हा जू की दी हुई नुपुर थी। जाने कहाँ रख दी मैंने। मुझे तो कान्हा से प्रेम ही नहीं हुआ अन्यथा उनकी दी हुई नुपुर मुझे प्राणों से प्रिय होती। तभी कान्हा जू मुझे छोड़ कर चले गए हैँ। प्यारी जू नुपुर के खोने से प्रियतम के दूरी के भाव में डूबने लगती है। हाय सखी मुझे प्रेम नहीं हुआ। मैं प्रियतम को प्रेम नहीं दे पाती । प्रियतम मुझे छोड़ चले गए। उनकी दी हुई नुपुर के घुंघरू जब कृष्ण कृष्ण बोलते हैँ मुझे अपने प्रियतम के समीप होने का अनुभव होता है। श्री जू के नेत्रों से अविरल अश्रु धारा प्रवाहित होने लगती है। ललिता सखी प्यारी जू की ये दशा देख समझ जाती हैँ कि अब प्रियतम को अति शीघ्र बुलाना होगा और श्री प्रिया जू की नुपुर भी ढूंढनी होगी कहीं प्यारी जू गहरे विरह में नहीं उतर जाएँ।
तुम कहाँ हो श्याम मेरे ढूंढे तेरी राधा
अखियाँ बरस रही हैं मोहन अब आ जा
तुम कहाँ हो.......
कोई तो खबर लाओ कब श्याम आएंगे
निष्प्राण हो रही है कब प्राण जायेंगे
कहाँ छिप गए हो मोहन कहाँ है तेरा पता
तुम कहाँ हो........
कबसे राह निहारे नहीं आये श्याम प्यारे
बेचैन सी बड़ी है मोहन ही बस पुकारे
हर किसी से पूछती है मोहन का क्या पता
तुम कहाँ हो .........
रोती बिलखती सी मोहन को ढूंढती है
अपनी खबर नहीं कुछ मोहन को सोचती है
कब आएं श्याम प्यारे छाई है अब घटा
तुम कहाँ हो......
पिया बिन है कोई सावन कुछ नहीं मन को भाये
नहीं मन मानता कुछ कैसे इसे मनायें
ना दिन की सुधि है ना रात का पता
तुम कहाँ हो......
श्री प्रिया जू रोती बिलखती कान्हा को ढूँढने कालिंदी तट की और चल पड़ती हैँ। कुछ सखियाँ भी श्री जू के पीछे दौड़ने लगती हैँ। प्यारी जू को बिरह की अति तीव्र पीड़ा अनुभव होती है। अपने प्रियतम के वियोग में बिरहनी प्रिया जू का प्रत्येक क्षण पीड़ा में डूबा हुआ है।
यही हाल प्रिया जू के चरण स्पर्श से वंचित नुपुर और उसके घुंघरुओं का भी है। ये विरह की पीडा भी बड़ी विचित्र होती है। हर प्रेमी भीतर से अपने प्रेमास्पद में ही डूबा होता है और उसका व्याकुल हृदय प्रियतम को ही पुकारता है। जैसी दशा स्वामिनी जू की हो रही वैसी ही नुपुर और घुंघरुओं की हो रही है। नुपुर वहीं कालिंदी तट पर बेसुध पड़ी है। कुछ सखियाँ श्री प्रिया जू को सम्भालने इनके पीछे पीछे चल रहीं हैँ। कुछ सखियाँ श्री जू की नुपुर ढूंढ रहीं ।
क्रमशः
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