मो सम कौन पातकी

मो सम कौन पातकी श्यामा और आप समान कृपालु ।
मैं हूँ पाप विषय की खान और स्वामिनी आप दयालु ।।

देख्यो न मेरो अधमाई श्यामा कीजो मोहे दासी ।
निज चरणन की मोहे रति दीजो काटो विषय की फासी ।।

राधा राधा नाम रटूँ मैं तेरो चरणन की सेवा पाऊँ ।
स्वामिनी मेरो किस विधि रीझै सो विधि तोहे रिझाऊँ ।।

तेरी शरण पड़ी मैं किशोरी अबहुँ ना मोहे बिसारो ।
स्वामिनी तेरो चरण रज ही मोहे प्राण ते लागे प्यारो ।।

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