तेरे ही रंग

कोई कहता है दिल में ही मेरे
मेरे यार का मकान है
नज़र से नहीं मिलेगा वो तुझको
महसूस करना आसान है

नज़र जहां तक ही तेरी जाए
उसी की रंग ओ महफ़िल है
है उसका कोई ठिकाना गर
वो बस एक तेरा दिल है

इस से भी कुछ सुकून मिला
इस रूह की बेचैनी को
कहाँ समझती हूँ साहिब मैं
नहीं छोड़ा नादानी को

चलो दिल तुमसे लगाया है
कोई तो मन्ज़िल है मेरी
तू ही बना मेरा है हर नग़मा
तू ही है हर ग़ज़ल मेरी

तेरा ही इश्क़ उतरा है अब
तेरे ही लफ्ज़ लिखते हैं
तू ही है कायनात में फैला
तेरे ही चेहरे दिखते हैं

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