सिसकती रूह

इस सिसकती सी रूह को थोडा सा सुकून दो
दो मुझे अपनी ही चाहत और अपना जूनून दो

नहीं आया इश्क़ करना कभी न ही इबादत आई
नहीं देखी कभी रहमत तेरी न ही दिल में चाहत आई

काश इस दिल में सिर्फ तेरी ही तड़प रह जाती
जल जाता दिल ये मेरा आग इतनी भड़क जाती

जाने अब तलक भी क्यों तेरे बगैर ज़िन्दा हूँ
की हैं मैंने खतायें कैसे कहूँ मैं शर्मिंदा हूँ

मेरी खताओं की आदत तो सदियों पुरानी है
फिर भी ये दिल है तेरा तेरी ही निशानी है

तेरी मर्ज़ी है तुम जैसे चाहो खेलो सनम
वादा है कोई भी तुमसे शिकवा करेंगे ना हम

बिन तेरे मुझे जन्नत की भी कोई आरज़ू नहीं
तू ही बस जुस्तजू मेरी और कोई जुस्तजू नहीं

चलो इस दर्द को थोडा सा रोज़ बढ़ाते रहना
अब तो हो चुकी है आदत इस दर्द को सहना

इतना दर्द देना जब तलक वजूद मेरा ना खो जाए
मुझमें मेरी मैं रहे ना बाक़ी सब तू ही हो जाए
बस तू ही तू हो जाए
सब तू ही तू हो जाए

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