मोहन कैसे मिलोगे
मोहन
कैसे मिलोगे आप
बहुत ढूँढा
बाहर भीतर
बहुत प्रयास किये
मिलूं कभी आपको
पर नहीं
मेरे गोविंद
मेरे नाथ
अब जाना
आप कब साधनों से मिले
आप कभी साधन साध्य नहीं
आप तो कृपा साध्य हो
साधन साध्य होते
तो अभिमान रहता
साधना का
सेवा का
जप का
तप का
आप कहाँ मिले इन साधनों से
आप तो कृपा साध्य हो
जिस पर कृपा करते हो
उसे ही मिलते हो
जिसे तुम चाहो
वही तुम्हें चाह सके
हे मेरे नाथ
मैं सर्वथा अयोग्य
बुध्दिहीन
जपहीन
तपहीन
साधनहीन
आपके चरणों में हूँ
हे करुणानिधान
भरोसा है मुझे
आपकी करुणा का
आपकी अहैतुकी कृपा का
हे गोविन्द
अब और देर नहीं कीजिये
शरण में लीजिये
नाथ
शरण में लीजिये
जैसे भी हूँ
हूँ तो आपकी ही
आप ही से छूटी
आप ही में समा जाना
मेरे गोविन्द
निभाओ अपनी प्रीत
मुझ अनाथ के
तुम्हीं नाथ
कृपा कीजो
रखलो दे हाथ
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