थोडा सुकून दे दो
थोडा तो सुकून दे दो
इस नशे मन को साहिब
जाने क्यों दीवानगी में
तेरा ही नाम पुकारता है
भूल जाता है दिल सब
जब महबूब की याद उठती है
फिर वही तड़प लौट आती है
तुम भी समझो न साहिब
मजबूर हूँ मैं इस दिल से
माना की खताएं होती हैँ मुझसे
मुद्दत से मैंने मोहबत ना की है
पर तेरे इश्क़ को देखा है मैंने
हाँ मैंने महसूस किया है
जाम भर जाम पिलाए हैं तुमने
तेरे इश्क़ वाला जाम पिया है
दर्द क्यों नहीं मैंने छिपाए तुमसे
क्यों अपना दर्द सरेआम किया है
देखो फिर से खताएं होती हैँ मुझसे
क्या करूँ दिल ए नादान जो ठहरा
तुम्हीं सम्भालो ना इस नादान को
चलो मोहन हम यूँ करते हैँ
अपना दिल दो मुझे मेरा तुम लेना
मोहबत में दिल बदला करते हैँ
मोहबत में दिल बदला करते हैं
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