निर्धन का धन

निर्धन का तुम धन हो श्यामा
ये धन देकर करो धनवान
तेरे चरणों की रज मैं पाऊँ
चाहूँ तुमसे यही वरदान

  हूँ अज्ञानी मैं पतित अधर्मी
  जप तप सेवा सुख से हीन
रखलो अपनी शरण में श्यामा
   चाहे मेरा है हृदय मलीन
   तेरा नाम रटूं दिन रैन मैं
  पल पल तेरा करूँ गुणगान
निर्धन का तुम धन हो श्यामा
  ये धन देकर करो धनवान
  तेरे चरणों की रज मैं पाऊँ
   चाहूँ तुमसे यही वरदान

नज़र कृपा की रखना लाडली
दर छोड़ तेरा मैं जाऊँ कैसे
जानूँ ना कोई विधि मैं किशोरी
  तेरी सेवा मैं कर पाऊँ कैसे
तुम्हीं लेना अब मेरी खबरिया
  तुम्हें पुकारूँ मैं मूर्ख नादान
निर्धन का तुम धन हो श्यामा
ये धन देकर करो धनवान
तेरे चरणों की रज मैं पाऊँ
   चाहूँ तुमसे यही वरदान

श्यामाश्याम बसो मेरे मन में
तुम ही मेरा धन बन जाओ
स्वास् स्वास् ले नाम तुम्हारा
ऐसे मेरा जीवन बन जाओ
कितने जन्मों से भूली हूँ तुमको
नाम तुम्हारा परम् सुख खान
निर्धन का तुम धन हो श्यामा
ये धन देकर करो धनवान
तेरे चरणों की रज मैं पाऊँ
  चाहूँ तुमसे यही वरदान

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