बिरह अग्न को ताप

बिरह अग्न को ताप हरो नाथ ताप मोहे दियो जलावे !
नैनन नीर बहे रात दिन मेरे नहीं अग्न बुझाने पावे !!

पीहू पीहू रटत ही भई बाँवरी कौन घड़ी पिया आवें !
राह निहारूँ पंथ बुहारूँ पल पल हिय ते आस ना जावे !!

काहे बिसराये दीन्हें नाथ मोहे इतना विलम्ब कीजौ !
नहीं चहुँ कछु और नाथ मोहे प्रेम धन अपनों दीजौ !!

बिरहन के हिय तुम्हीं बसत हो मोहन तेरो ही आधार !
चरणन सों रखियो नाथ मोहे हाथ पकर दीन्हों निकार !!

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