श्री जू का स्वप्न@
श्री जू का स्वप्न
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श्री जू बहुत व्याकुल हैं । कान्हा कहाँ है |वो अब तक नहीं आये | मुझे भूल गए वो । हाय !!! मैं उनको प्रेम नहीं दे पाई । वो मुझे छोड़ कर चले गए। बहुत व्याकुल हो विलाप करने लगती हैं। सब सखियाँ उनको सम्भालने का बहुत प्रयत्न करती हैँ पर उनकी स्थिति यूँ ही बनी हुई है। पूरी देह कांप रही है अत्यंत व्याकुल। उनकी ये दशा उनकी सखियों को भी व्याकुल कर रही है । वो अपनी स्वामिनी जू को इस प्रकार रोते तड़पते कैसे देख सकती हैं । उनके भी प्राणों पर बन आई है।
सहसा श्री जू उठ बाहर की और दौड़ पड़ती हैँ। कान्हा कान्हा....... कहती हुई व्याकुल सी कभी किधर कभी किधर दौड़ रही हैँ । सब सखियाँ उनके पीछे दौड़ पड़ती हैं । वो उनसे हाथ छुड़ा कर भाग रही । लाडली कहीँ अपने आप को सम्भाल नहीं पाई तो। उनको स्वयम् की कोई खबर नहीं हो रही। हाय ! दौड़ती हुई श्री जू गिर जाती हैं। सखियाँ उनको सम्भालती हैं ।
सहसा उनकी आँख खुलती है। वो तो कान्हा के आलिंगन में हैं। तेज़ तेज़ सांसे चल रही हैं पूरी देह काम्प् रही है स्वेद कण मुख पर फैले हुए और कान्हा कान्हा ..... पुकार लगा रही । कान्हा कब से उनकी इस स्थिति को अनुभव कर रहे। कब से उनका श्री मुख निहार रहे हैं। वो स्वप्न में ही ये सब अनुभव कर रही हैं । कान्हा को सन्मुख पा उनको विश्वास नहीं हो रहा की वो स्वप्न में हैं । कान्हा उन्हें प्रेम से आलिंगन करते हैं और श्री जू कान्हा कान्हा कहती हुई उन्हीं में समा जाती हैँ। कैसा दिव्य प्रेम है जो संयोग में भी वियोग की व्याकुलता देता और कभी वियोग में संयोग का अनुभव। इस अद्भुत प्रेम की जय हो।
जय जय श्री राधे
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