मैं तो दर्द की नगरी

मैं तो दर्द की नगरी का एक बाशिंदा हूँ
है अफ़सोस तुझसे दूर हूँ क्यों जिन्दा हूँ

कब तलक दूँ इस दिल को तस्सली मैं
गुनाहगार हूँ अपने गुनाहों से शर्मिंदा हूँ
मैं तो दर्द.......

होंगें चाहने वाले तेरे लाखों ही माना मैंने
हैं गुनाहगार जो उनमें से मैं चुनिंदा हूँ
मैं तो दर्द......

नहीं रहना तेरे शहर में मेरा दम घुटता है
मैं तो गुनाहों की नगरी का परिंदा हूँ
मैं तो दर्द ........

मुझको तुझसे बिछड़ने का कोई गम ना हुआ
नहीं तेरे शहर का बेगाना ही कोई बन्दा हूँ
मैं तो दर्द की नगरी का एक बाशिंदा हूँ
है अफ़सोस तुझसे दूर हूँ क्यों जिन्दा हूँ
एक बार तू ही बता दे मैं क्यों जिन्दा हूँ

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