ये रवायतें ये शिकायतें

ये रवायतें
ये शिकायतें
ये हसरतें
क्यों हैं दिल में
हाय !
मुझे इश्क़ न हुआ तुमसे
यदि ज़रा भी होता
तो यूँ नहीं होता
सब मान लेती
तुझे जान लेती
कोई शिकायत को लब नहीं खुलते
झूठ ही कह दिया मैंने
तेरा तुझको सौंपकर क्या लागे है मेरा
तेरा सब जानती तो क्यों शिकवे शिकायतें रहती
क्यों सारी दुनिया तेरी लीला न लगती
हाय
मुझे इश्क़ नहीं हुआ तुमसे
ये जो भी है
तुम्हारा ही इश्क़
तुम ही हमेशा करते रहे
हमेशा देते रहे
मैं सदा लेती रही
फिर भी शिकायतें
रोज़ रोज़ शिकायतें
तुम वो भी सुनते रहे
कभी खफा भी नहीं हुए
इश्क़ करना तुमसे ही सीखना मुझे
तुमको ही करूँ
तुम सिखा सकोगे मुझे
क्या मैं सीख़ सकूँ कभी
कभी मेरी गुस्ताखियाँ कम हों
तुम उस में भी खुश रहते हो
मेरी शिकयतें खत्म न हुई
न इश्क़ हुआ
तुम्हारी मेहरबानी कम न हुई
न इश्क़ रुका
तुम बढ़ाते ही रहे मोहन
मुझे सिखाओ न
मैं सीख़ पाऊँगी क्या
जन्मों लग गए सीखने में
अभी तक नहीं सीखी
तुम जब भी जिंदगी दिए
हर बार एहसास दिए
नहीं जिया कभी तुम्हारे संग
एक बार और कोशिश करो
सिखाने की
शायद मैं सीख़ सकूँ
तुमसे सीख़ तुमको इश्क़ कर सकूँ

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