साहिब फिर चले आये
साहिब !!!
फिर चले आये
अब तो तुम्हें देखने की हिम्मत नहीं होती
धड़कनें बेताब हो जाती हैं
खलबली मचा देते हो
छिप जाओ
अब डरती हूँ
ये आँखें तुम्हें नहीं देख लें
देख लेंगी
तो हर जगह तुम्हें ही ढूंढेंगी
जब तुम मिलोगे
हर और
तो इन आँखों में चमक होगी
जब तुम नहीं मिलोगे
तो अश्कों का सावन होगा
हाय !!!
वो लम्हे
इतने दर्द भरे होते
तुम छिपे रहो साहिब
चलो पर्दा करो
तुम बाहर नहीं आया करो पर्दे से
जाने कितने दिलों को
तड़पा जाते हो
मिलते भी ऐसे हो
की मिलकर भी नहीं मिले
छिपे रहो साहिब
पर्दे में ही रहो
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