ख़ामोशी
एक लम्बी सी ख़ामोशी है
ना कुछ कहने को
ना कुछ सुनने को
सामने ही आ बैठो
जब लफ्ज़ खामोश हों
नज़र ही बात कर लेगी
पर सोचती हूँ
तुमको देखकर क्या हाल होगा
जब तक नज़र में रहोगे
सुकून रहेगा
तुम फिर चले जाओगे
तो कैसे सहूंगी
हाय !!
अब तो नज़र भी खामोश होने लगी
पहले अश्क़ बोल देते थे
जो राज़ दफन रहते थे दिल में
अक्सर ही खोल देते थे
अब तो अश्क़ भी खामोश हैं
सब और ख़ामोशी सी है
एक धड़कन सुनती हूँ
इस ख़ामोशी में
जो तुम्हारा ही नाम लेती है
कभी आओ तो सुनना
इन खामोशियों में दिल की धड़कन कहती है
मोहन
मोहन
मोहन
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