वेदना

यूँ ही रेत सी फिसलती है जिंदगी
कभी चाहूँ पकड़ लूँ इसे
भरती हूँ थोड़ी सी मुट्ठी में
फिसल जाती है हाथ से
साँस साँस जा रही है
तेरे बिना जी रही हूँ
क्या ये जीवन है
पल पल बिखरता हुआ
ये वेदना
सुनती हूँ प्रेमी तो सदा प्रियतम संग रहते हैं
परन्तु
तुम कहाँ हो
मुझे वेदना क्यों है
हाय !
मुझे प्रेम ही नहीं हुआ अब तक
नहीं तो तुम ही तुम रहते
फिर वेदना कहाँ होती
अगर प्रेम होता
तुम अलग कहाँ रह पाते
मेरा कोई अलग अस्तित्व ही नहीं होता
परन्तु
मैं हूँ
और तुम नहीं हो
ये तो प्रेम नहीं है
ओह !
तुम मिलोगे भी कैसे
तुम तो प्रेम से ही मिलते हो
हाय
अब तक प्रेम ही नहीं हुआ
सच कहूँ
अपने को सर्वथा अयोग्य ही जानती हूँ
मैं नहीं कर पाऊँगी तुमसे प्रेम
और प्रेम बिना
तुम आओगे नहीं
अब यही वेदना ही मेरा जीवन हो गया
और मन में यही लालसा रह गयी
काश
कभी प्रेम का एक कण भी मिल जाए
काश
काश
काश...........
तुम ही रहो मैं नहीं

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून