जाने कब आएं महबूब मेरे

जाने कब आएं महबूब मेरे हम राहों में नज़रें बिछा बैठे
इक दिल ही तो था दौलत अपनी हम साहिब वो भी गवा बैठे

दिन रात तेरा इंतज़ार हमें जाने कब आएं महबूब यहां
इन ख्यालों से ही हम ज़िंदा हैं इस आस को छोड़ जाएँ कहाँ
हम दर्द के मारे हैं साहिब दुनिया को दर्द सुना बैठे
जाने कब आएं महबूब मेरे .......

इस आग ने मुझे महबूब मेरे देख कैसे है जला डाला
पीना भी नहीं हमें मुश्किल लगा इक जहर का प्याला पिला डाला
तेरा दर्द ही मेरी दौलत है हाय हम इसको भी लुटा बैठे
जाने कब आएँ महबूब मेरे......

ये दिल अब दर्द की बस्ती है हम दर्दों के खरीदार यहां
खुद को भी हम नीलाम करें साहिब ऐसी भी किस्मत कहाँ
इस दिल से जख्मों के सब निशाँ हम साहिब कब से मिटा बैठे
जाने कब आएं महबूब मेरे .......

तेरा इश्क़ ही मेरी इबादत है यही बन जाए जूनून मेरा
तेरा दिल ही मेरी मंजिल है तू ही साहिब है सुकून मेरा
इस दिल में आएगा कोई अब कैसे हम तुझको यार बिठा बैठे
जाने कब आएं महबूब मेरे हम राहों में नज़रें बिछा बैठे
इक दिल ही तो था दौलत अपनी हम साहिब वो भी गवा बैठे

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