इश्क़ का यक़ीन

हाँ साहिब मुझको तुम्हारे इश्क़ का यकीन है
किस शिद्दत से तुम इश्क़ अपना निभाते हो

तेरे दीदार की खातिर जाने कितना तड़पते हैं हम
फिर भी क्या अदा है जो तुम छिपे जाते हो

अश्क़ बहते हैं इन आँखों से याद में तेरी
और तुम कैसी बातोँ से हमें हँसाते हो

रोने भी नहीं देते ये भी मोहबत है तेरी
कितने ही चेहरे बदल तुम मिलने आ जाते हो

देखो निभाते हो मोहबत ये अदा है तुम्हारी
क्यों अपने आप को साहिब यूँ ही छिपाते हो

कभी कभी सुलगने लगते हैँ अरमान दिल के
फिर तुम बारिशों से बरसने लग जाते हो

देखो इतना ना सम्भालो कुछ तड़पने दो मुझे
मिलकर भी मिलते नहीं हो कैसे आ जाते हो

चाहे जितना भी बहला लो नहीं तस्सली मुझे इसकी
क्यों ऐसे इश्क़ में मेरी धड़कनें बढ़ाते हो

तुम ही हो पहली और आख़िरी मंजिल मेरी
अब तुम मुझको जान से अज़ीज हुए जाते हो

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