श्री जू के श्रृंगार कान्हा को धारण करना@
एक सखी अपनी मस्ती में झूमती गाती जा रही है पुष्प चयन करने। पता नहीं आज इतनी प्रसन्न क्यों है की नाचती ही जा रही है । अचानक कान्हा उससे आकर टकरा जाते हैँ। विनोद करना तो इनका स्वाभाव है । अरी बाँवरी ! तू इतनी प्रसन्न हो नाचती हुई किधर जा रही । तुझे चलने का भी ज्ञान नहीं रहता कभी किधर कभी किधर टकराती रहती है । सखी कहती है मैं श्री जू के लिए माला बनाने हेतु पुष्प लेने जा रही हूँ । सहसा कान्हा अदृश्य हो जाते हैं और सखी अपनी पुष्पों से भरी डलिया लेकर लौट आती है। जैसे ही डलिया नीचे रखती है सहसा कान्हा आ जाते हैं । सोच भी नहीं पाती की पहले अदृश्य हो गए अब एकदम से कैसे सामने आ गए। उसे लगा कहीं कान्हा डलिया में ही पुष्प बन तो नहीं बैठे थे। श्री जू का प्रेम ही ऐसा है की कान्हा उन पर सर्वस्व न्यौछावर करने को लालयित रहते हैं । उस सखी को धक्का देकर डलिया खींच लेते हैँ और कहते हैं बाँवरी !तू जा तेरे से कोई काम ठीक से नहीं होगा मैं स्वयम् ही माला बना लूंगा। हकपका कर डलिया वही छोड़ लौट आती है।
लौट कर वो अपने हाथ में एक चुनरी उठाती है जिसको उसने श्री जू हेतु तयार किया है। सात रंग में रंगकर उस पर विविध तरह की सजावट की है और सुंदर किनारी लगाई है। तभी कान्हा वहां भी आ जाते हैँ और उससे चुनरी छीन लेते हैं। इसकी दशा विचित्र हो रही कान्हा आज कैसे विनोद कर रहे। प्रत्येक वस्तु के लिए स्वयम् लालायित हो रहे। कान्हा वो चुनरी लेकर भाग जाते हैं । कुछ देर पश्चात वो देखती है की कान्हा गले में पुष्प माल डाले और वही चुनरी ओढ़ कर खड़े हो जाते हैँ। दोनों एक दूसरे को देख हँसने लगते हैँ। कान्हा राधा की प्रत्येक वस्तु को बहुत प्रेम से सहेजते हैँ। सखी भी बहुत प्रसन्न है क्योंकि ये पुष्पमाला और चुनरी अब किशोरी जू धारण करके आनंदित होंगीं।
जय जय श्री राधे
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