इश्क़ के नग्में
फ़िज़ाओं में सुन रही हूँ इश्क़ के नग्में
हसरतें मेरी बेताब हुई जाती हैं
तुम कब आओ मेरे आशियाने में
आरज़ूएं बेनकाब हुई जाती हैं
कब तेरे आगोश में सिमट जाएंगे हम
कब तेरे जलवों का दीदार पाएंगे
लौटना नहीं मुझे तेरी कभी पनाहों से
लौटकर ज़िन्दा क्या हम रह पाएंगे
आ महबूब मेरे रंग ले अपने ही रंग में
तेरे ही इश्क़ के रंग में रँगना है मुझे
बनकर ख़ुशबू घुल जाऊँ तेरी सांसों में
तेरे होंठों पर हँसी बनकर खिलना है मुझे
इन बेताब सी हसरतों की मंजिल हो तुम
इस बेकरार रूह का क़रार हो तुम
अब तो भर लो मुझे पनाहों में
जाने कितने तरसे लम्हों का इंतज़ार हो तुम
तुझमें फ़ना होना ही मंजिल है मेरी
तेरी आरज़ू के सिवा और कोई आरज़ू नहीं
इश्क़ बनकर दौड़ जाओ मेरी रगों में अब
तेरी ज़ुस्तज़ु के सिवा और कोई ज़ुस्तज़ु नहीं
ये बेकरार सांसें घुलेंगीं अब तेरी सांसों में
जाने किस घड़ी इन बेचैनियों को करार आएगा
तुझसे इश्क़ आज से नहीं हुआ है मुद्दत से
तेरे आगोश में ये दिल करार पाएगा
अब और इंतज़ार हमसे होता नहीं
इन बेकरार से लम्हों को कोई वजह दे दो
उम्र गुज़रे अब तेरी बाँहों में ही मेरी
साहिब अब मुझे अपनी बाँहों में पनाह दे दो
देखो अब लौटना नहीं ख़ाली मुझको
इस दिल ए बेकरार का करार हो तुम
क्या मैं मोहबतों को बयान करूँ लफ़्ज़ों में
मेरा हर लफ्ज़ ही मेरी सरकार हो तुम
लफ्ज़ भी तेरे और हर साँस भी है तेरी
आए ना आए और अब मर्ज़ी तुम्हारी है
है इंतज़ार इस रूह को मुद्दत से तेरा
देख ले आकर कितनी बेकरारी है
जाने क्यों हर हसरत आज लफ़्ज़ों में बहना चाहती है
आरज़ू दिल की तुम्हें कहना चाहती है
तुम ही तुम हो मेरे जीने की वजह साहिब मेरे
ये रूह तुझमें फनाह होकर रहना चाहती है
और कोई आरज़ू बाक़ी नहीं इस दिल में
बस हर तमन्ना तुझमें बहना चाहती है
इस रूह पर है इख्तयार सिर्फ तेरा ही
मेरे साहिब ये तेरी ही रहना चाहती है
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