आओ प्रियतम ये उत्सव है

आओ प्रियतम ये उत्सव है
नित्य नित्य रस बरसाओ
सदा प्यारी संग विराजो
मुदित छवि तुम दिखलाओ
नित्य नित्य नव रंग बरसाओ
नित्व नवल सिंगार धराओ
मेरी इन प्यासी अखियन में
मेरे युगल अब आन समाओ
बाट निहारूँ चरण पखारूँ
कोई सेवा दीजो मोहे प्यारी
युगल चन्द्र मनमोहन छवि पर
नित नित जाऊँ मैं बलिहारी
आओ सखी मिल करें आनंद
प्रियतम की है आवन बेला
बरस रही चांदनी मन्द मन्द
पुलकित सौरभ मदमाती छटा
मेघ सों बरस रह्यो है अमृत
बरस रही है काली घटा
आई है बेला निकट दरस की
आओ संग निहारें मोहन
कृष्ण चन्द्र की निरख छवि
जीवन बने सबका पावन

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून