दो मुझे विरह
नहीं जब तक मेरो हिय प्रेम झंकार
मैं विरहित हूँ
जब तक नहीं आवें सखी नन्दकुमार
मैं विरहित हूँ
जब तक नहीं बहे सखी प्रेम की धार
मैं विरहित हूँ
जब तक नहीं रीझै मेरो नन्दकुमार
मैं विरहित हूँ
हिय में भरो मेरे हाय शोक अपार
मैं विरहित हूँ
दीख रह्यो सर्वथा व्यर्थ मोहे ये संसार
मैं विरहित हूँ
हाय सखी अजहुँ ना आयो मेरो भरतार
मैं विरहित हूँ
हाँ यही दो मुझे
मिल्न नहीं
केवल विरह
पल पल का विरह
जिसकी पीड़ा मृत्यु से भी अधिक हो
एक बार मरने से तो
सब पीड़ा खत्म
पल पल की पीड़ा दो
पल पल का विरह
क्योंकि तुमसे मिल्न कैसे माँगूँ
मेरी कहाँ योग्यता
मांग भी ली तो
तुम आ जाओगे
तुम देते रहोगे
मुझे नहीं लेना
देखो विरह दो
मेरी पीड़ा कम नहीं हो
मेरी तड़प कम नहीं हो
पल पल की तड़प
पल पल की जलन
पल पल अश्रु
कब दोगे मोहन
इतनी पीड़ा
कि केवल तुम्हारी स्मृति रहे
दो ना मोहन
अपना विरह दे दो
यही मेरा श्रृंगार हो
इसे नित्य धारण करूँ
यही पहनूँ
इसी से सजुं
मेरा आभूषण बना दो
दो मुझे विरह
मोहन
दो मुझे विरह
Comments
Post a Comment