प्रियतम

क्यों दूर हो मेरे प्रियतम
मुझको छोड़ा अकेली ही
लगे हर गली अंधियारी ही
तुम ही जीवन प्रकाश मेरे
मैं कभी बनूँ धरती जैसे
तुम बन जाओ आकाश मेरे

भर लाओ प्रेम जल प्रियतम
बरसो नित काली घटा बनकर
रहे धरती सदा प्यासी ही
तुम मिल जाओ अद्भुत छटा बनकर

बरसो प्रियतम अब जाओ नहीं
ये धरती बहुत प्यासी है
कब प्रेम सुधा बरसाओगे तुम
नहीं प्यास कोई ज़रा सी है

जिसको तुम एक स्पर्श दे दो
फिर कहाँ उसे कोई होश रहे
हर पल बस तेरी पुकार रहे
तेरी प्रेम सुधा में मदहोश रहे

आओ प्रियतम अब देर नहीं
कैसे तुम्हारा वियोग सहूँ
तुम मन की व्यथा सुनो सारी
किस से मैं मन की पीर कहूँ

रोम रोम से एक पुकार उठे
आओ प्रियतम आओ प्रियतम
मैं हूँ प्यासी धरती सी ही
तुम प्रेम सुधा बरसाओ मोहन

नहीं तेरे बिना सिंगार करूँ
बिन तेरे कैसे धीर धरूँ
चले जाएँ ना कहीं प्राण मेरे
अकुलाई सी ये पीर जरुँ

आओ प्रियतम नहीं देर करो
हुआ कठिन बहुत वियोग प्रियतम
ये प्रेम मार्ग ही कुछ ऐसा है
नित्य मिल्न नित्य संयोग प्रियतम

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