अक्सर रो देती है

अक्सर ही रो देती है आँख मेरी अपनी बेरुखी पर
क्यों साहिब तेरी इनायतें नज़र नहीं आती

क्यों तुम इतना इश्क़ करते हो
फिर भी सांसें तेरे नाम के बिना चलती हैँ

हैरान हूँ अपनी गुस्ताखियों पर साहिब
और तेरी मोहबत पर कुर्बान हो जाऊँ

हर और मोहबत ही तेरी नज़र आई है
फिर भी क्यों आँख तुझे नहीं देखती

देखो मुझे गुस्ताखियों की आदत है
और तुम मोहबत में चूर रहते हो

मुझे प्यारी है दौलत जहान की
और मुझसे इश्क़ की बात कहते हो

देखो साहिब तुम गलत पते पर हो फिर से
यहां कोई गुस्ताख ही मिलेगा तुमको

जिस दिल में तुम्हारी चाहत की चाहत ना उठी
जो दिल अपने सुकून नहीं छोड़ सका कभी

हैरान हूँ मैं इस दिल की गुस्ताखी पर
उससे ज्यादा तेरी मोहबत हैरान करती है

नहीं एक बार भी लब पर कभी नाम तेरा
और तेरी मोहबत मुझे इस कदर परवान करती है

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