कैसे खेलते हो मोहन

तुम कैसे खेलते हो मोहन

कभी बन कर आए प्यास तुम
कोई पिलाने को बेताब है

कभी उतरे हो भूख बन
कोई खिलाने को बेताब है

कभी हो सवाल जहन का
कोई बताने को बेताब है

छू गए कभी महक बनकर
जैसे खिल रहा कोई गुलाब है

कैसे छिपोगे तुम साहिब
अब उठ रहा नकाब है

हर शै में अब दीदार तेरा ही
तू ही हर और रोशन ओ आफ़ताब है

अब बताओ कैसे छिपोगे तुम

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