जाने क्यों ऑंखें प्यासी

जाने क्यों ये आँखें प्यासी हैँ
इनको तलब है तेरे दीदार की
रहती है तलाश हर और तुम्हारी
एक नज़र हो जाए सरकार की
नहीं नज़र आते तुम ये अदा तुम्हारी
तुमको छिपने में मज़ा आता है साहिब
हमको भी आदत हो गयी पुकारने की
हमको बुलाने में मज़ा आता है साहिब
चलो हम इसी तरह सफर जारी रखें
तुम छिपते रहो मैं ढूंढती रहूँ
तुम अपना इश्क़ निभाते रहना
यूँ तो इस दिल को तड़प है तुमसे मिलने की
फिर भी दुआ है तुम ही जीत लो
तुम जीतोगे तो फिर से छिपते रहोगे
मैं हार कर भी पुकारती रहूँ
कभी ये खेल नहीं खत्म करना
कभी मेरी तड़प नहीं कम करना
ये खेल यूँ ही चलते रहें सदा
क्योंकि ये खेल है मोहबत का
छिपना और मिलना ही इसकी अदा
चलो इस दिल की बात छोड़ो
चलो हम अपना खेल रखें जारी
तुम अब फिर से छिपो मोहन
फिर से आई मेरी ढूँढने की बारी

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