आओ मोहन
दिन तो है उत्सव का प्रियतम
छाई क्यों घनघोर घटाएं
पीर विरह की क्यों चहुँ और
क्यों सबके हृदय तड़पाएं
क्यों ये तपन है हृदय में ऐसी
अश्रु जल से जो बुझ नहीं पाएं
हृदय वेदना कैसी प्रियतम
तुम ही बुझावो तो बुझ पाएं
इस बदरिया का जल भी
बरस बरस हाय अग्न बुझाए
इसने भी प्रेम किया ही होगा
रैन दिवस जो बरसती जाए
मोहन तुमसे नेह लगा कर
निशदिन नैना झर झर जाएँ
प्रीत की रीत नहीं मैं समझी
प्रीत मिले और अश्रु ना आएं
तुम भी सोच रहे होंगें मोहन
ये कैसे सब उत्सव मनाएं
जगत लगा सब हर्ष पूर्ण ही
जगमग जगमग दीप जलाएं
सब और उल्लास है अद्भुत
हृदय पीर किसको सुनाएँ
नेह लगाकर जो हैं बैठी
प्रियतम की जो आस लगाएं
कौन दिवस है कोई सुधि न
बस तेरी ही आस लगाएं
तुम संग हो तो नित्य है उत्सव
तुम बिन कैसे धीर धराएँ
मोहन क्या है मेरा जग में
जो हम तुमको आज चढ़ाएं
अश्रु हैं केवल इन दो नैनों में
इन्हीं से ही तुमको मनाएं
सब कुछ प्रियतम तुमको समर्पित
जो भी पाएं तुमसे ही पाएं
आओ मोहना करो ना देरी
पीर हृदय की तुमको सुनाएँ
आओ मोहन देर करो ना
तुम बिन कोई ठौर ना पाएं
आस तुम्हारी ही जीवन है
कैसे तुम बिन जीवन बिताएं
सांसें भी हाय बोझ बनी हैं
तुम बिन जीवन व्यर्थ गवाएं
मोहन आओ देर करो ना
सब हृदय एक आवाज़ लगाएं
सम्पूर्ण विश्व को प्रेम दान दो
बैठे यही सब आस लगाएं
आओ मोहन देर भई भारी
राह तकें कब प्रियतम आएं
आओ मोहन आओ मोहन
व्याकुल नैना नीर बहाएं
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