हर और आहट

हर और है आहट तेरे आने की
आज धड़कन तेज़ हुई ज़माने की

है कोई बेकरार कितना सब तू जाने
क्या जरूरत है लफ़्ज़ों से दिल दिखाने की
हर और आहट......

बैठे हैं इंतज़ार में हम मुद्दत से
तुमको आदत है छिपने की और मुझे बुलाने की
हर और आहट.....

दर्द दो या ख़ुशी क़ुबूल करें सब
हिम्मत देना दर्द में भी मुस्कुराने की
हर और आहट.......

इश्क़ में ये तो चलता रहता है
ये भी अदा है रूठने मनाने की
हर और आहट......

तुम भी याद रखते हो आशिकों को
तुमको नहीं आदत हमें भुलाने की
हर और आहट......

और मुझे मोहबत आज तलक न आई
नहीं आदत कोई रस्में भी निभाने की
हर और आहट......

तेरे ही लफ्ज़ ग़ज़ल बन उतरते हैं
मेरी क्या औक़ात है कुछ भी लिख पाने की
हर और है आहट तेरे आने की
आज धड़कन तेज़ हुई ज़माने की

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