विरह वेदना प्रियतम

विरह वेदना से प्रतिपल
आँखें झरती हैं प्रियतम
व्याकुलता अति भारी
मन में भरती है प्रियतम
छोड़ गए सखी आज मोहे
कहती रहती हैं प्रियतम
व्याकुलता पिया मिल्न की
करती रहतीं हैं प्रियतम
दूर देस बसे पिया मेरे
डरती रहती हैं प्रियतम
आओ मोहना देर भई बहुत
कहती रहती हैं प्रियतम
कभी अपने चारों और ही
तुमको देखा करती हैं प्रियतम
प्रियतम से ही प्रियतम की बातें
करती रहती हैं प्रियतम
प्रियतम ही हैं सर्व रूप में
अनुभव करती हैं प्रियतम
देख देख प्रियतम को ही
सुख से भरती रहती हैं प्रियतम
पुनः सहसा विरह वेदना
घेरा करती है प्रियतम
छोड़ गए हाय प्रियतम मेरे
रुदन करती है प्रियतम
पल में मिल्न पल में विरह
कैसी ये प्रीती है प्रियतम
नित्य नव मिल्न नित्य विरह
ये बाँवरी जीती है प्रियतम

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून