काश तुमसे मोहबत

काश मुझे भी कभी तुमसे मोहबत होती
काश लबों पर मेरे तेरा नाम होता
हसरत ही नहीं हुई तेरी उल्फ़त की मुझे
काश चाहत में कोई मेरा मुकाम होता

मुझे क्यों ना हुई तेरी चाहतों की चाहत
ए मौला बख्श दे मुझे कोई ऐसी हसरत
कभी छोड़ दुनिया के झमेलों को मैं
एक पल भी कर सकूँ तेरी इबादत

हाय क्यों मेरे दिल में ये ख्याल नहीं आता
तमाम उम्र तेरे बगैर गुज़ार दी मैंने
एक पल भी सुकून तुझे कभी दे ना सकी
जितना भी जी उम्र बेकार की मैंने

मेरे दिल में तेरी चाहत कब होगी
हूँ गुस्ताख तुझे मुझसे राहत कब होगी
देखो गुस्ताखी ही बन चुकी आदत मेरी
जाने मुझे इश्क़ की आदत कब होगी

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