एकहुँ बात

एकहुँ बात सखी मोहे बतावो
ऐसो प्रेम मैं कैसे पाऊँ
पल नहीं बिसरे मोहे कान्हा जू
बिसर जाऊँ तो मैं मर जाऊँ

कबहुँ प्रेम ऐसो होय सखी मेरो
तड़पूं ऐसो जल बिन मीन
कबहुँ बिरह अग्नि मोहे तपावे
कबहुँ होय मम हृदय दीन

कबहुँ ऐसो तड़प होय सखी
बिसर जावे सबहुं जगत अलाप
विरह अग्न में दग्ध रहूँ सखी
मोहन मेटे कबहुँ मेरो संताप

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