नशा मोहबत का
नशा हो रहा है तेरी मोहबत का
क्या कहना है तेरी इनायत का
रुख से ज़रा पर्दा तो हटाइये साहिब
चेहरा तो देखूं अपनी इबादत का
देखो इतना करीब नहीं आओ
की सांसें ही रुक जाएँ मेरी
जी लूँ ऐसे चन्द लम्हें मैं भी
जो चिल्मनों को हटाते गुज़रें
किस क़दर तुम मोहबत करते हो
हाँ देखा है मैंने ये इश्क़ तेरा
साँस बन मुझमें ही उतर गए हो
अब तेरा पता किससे पूछूँ
ये भी अंदाज़ ए मोहबत अजीब तेरा
तू मुझमें है और मैं ढूंढती हूँ
बन गए हो सवाल जहन में मेरे
और बाहर जवाब मैं ढूंढती हूँ
क्या छिपने के अंदाज़ हैँ तुम्हारे
मिलकर भी तेरा पता नहीं है
जानती हूँ दूर नहीं रह पाओगे
फिर भी क्यों तेरा पता नहीं है
क्या यही इश्क़ होता है बताओ
किसी को याद करते ही खोते हैं
उसकी गली ही पता बन गयी मेरा
फिर भी पता पूछ पूछ रोते हैं
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