अपनी पीर कहो
चलो एक कहानी तुम लिख दो
तुम प्रेम सुधा बरसाने की
और एक कहानी मैं लिख दूँ
पीर व्यथा और अकुलाने की
क्यों पीर मिली प्रेम में प्रियतम
क्यों नहीं तुम्हारा संग मिला
मिल गया जगत का रंग मुझे
क्यों नहीं तुम्हारा रंग मिला
तुम जो चाहो मैं कह लूँगी
हाँ प्रेम व्यथा सब सह लूँगी
पर इसको नहीं मोहन सत्य कहो
बिन तेरे एक पल रह लूंगी
हाँ सर्वथा अयोग्य हूँ मैं मोहन
कोई सुख नहीं कोई प्रेम नहीं
नहीं कोई पुण्य साधना मेरी
तुम्हें भजूँ ये भी कोई नेम नहीं
नहीं तुमसे प्रेम हुआ मुझको
यही दर्द सताता है प्रियतम
हर आँसूं जो आँखों से बहता
तेरी याद दिलाता है प्रियतम
तुम जैसे चाहो मैं रह लूँगी
मेरे प्रियतम सदा प्रसन्न रहो
हाँ सुनूँगी मैं तुम्हारे दर्द सभी
मेरे मोहन अपनी पीर कहो
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