बाँवरी तेरी
कबहुँ मेरे नयन तव दरस पावेंगे
कबहुँ निरख निरख नयन झर्रावेंगे
कबहुँ कर्ण में बांसुरी धुन आवेगी
कबहुँ प्रियतम तेरा नाम सुनावेगी
कबहुँ नासिका में सुंगंध तेरो आवेगी
हर इंद्री तव स्पर्श करावेगी
हाय प्रियतम कित दूर रहे मोते
कबहुँ विरहन तेरो दरस पावेगी
प्राण अकुलाये मेरो कहाँ छिपे प्रियतम
छिपने में तुम भये हो आनंदित
और नहीं खेलो प्राणप्रिय खेल ऐसो
कैसो धीर धरूँ कैसे सम्भल पावे चित
आओ मुरारी तज दीजो मान अबहुँ
पीर मेरो हिय में उठत अति भारी जी
तुम बिन मेरो और कौन नाथ जग में
एक तुम प्राणप्रिय तुम ही बनवारी जी
लीजो सुधि नाथ देर भई बहुतेरी ही
कबसों पथ निहारे बाँवरी तेरी ही
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