दर की फ़क़ीरी
ए मौला अपने दर की फ़क़ीरी दे दो
तेरी चौखट पर रोज़ सज़दा करूँ
तेरी रज़ा में ही राज़ी रहूँ हमेशा
और अपने फ़र्ज़ अदा करूँ
नीयत हो पाक मेरी ऐसी बरकत देना
तेरे बन्दों से भी तुझसी वफ़ा करूँ
हरेक शै में दीदार हो तेरा ही
ना मिलने का कभी शिकवा करूँ
तेरे ही दर से मिलीं बरकतें मुझको
तू आबाद रहे यही दुआ करूँ
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