कुछ तो होगा न

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      कुछ तो होगा ना
       हरि के नाम में
  क्यों मीरा दीवानी भई
   जगत से बेगानी भई
  हँसते हुए विष पी गयी
सारा जीवन ऐसे जी गयी
      कुछ तो होगा ना
       हरि के नाम में

थे धन्ने ने पत्थर को भोग पवाये
क्यों भोग पाने ठाकुर जी आये
था प्रेम से ठाकुर को पुकारा
ठाकुर ने बोला मैं हूँ तुम्हारा
       कुछ तो होगा ना
        हरि के नाम में

क्यों मेवे छोड़ छिलके प्रभु पाये
दुर्योधन छोड़ विरदु घर आये
    हरि को भी प्रेम है भाये
हरि नाम में हरि आप समाये
        कुछ तो होगा ना
         हरि के नाम में

क्यों संन्यास पाया घर बार छोड़ा
क्यों प्रभु प्रेम में विषय सुख छोड़ा
   कुछ तो पाया होगा किसी ने
       भक्ति के इस जाम में
           कुछ तो होगा ना
            हरि के नाम में

  व्यर्थ हुआ जाता जीवन सारा
  फिर भी सुहावे जगत पसारा
कब मुख पर हरि नाम आएगा
कब जीवन में घनश्याम आएगा
        कुछ तो होगा ना
          हरि के नाम में

  हरि नाम में प्रभु आप विराजे
   हरि नाम ही तेरे मुख साजे
है मानुष जन्म सौभाग्य से पाया
क्यों हरि नाम बिन व्यर्थ गवाया
          कुछ तो होगा ना
           हरि के नाम में
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