श्याम सिंगार कियो

श्याम कियो सिंगार सजनी को
तबहुँ दर्पण दियो दिखाये !
महाभाव प्रेम सों हाथ कम्प गयो
तबहुँ दर्पण दियो हिलाये !
सजनी को मुख दिख्यो नाही
ऐसो होय प्रेम विकार !
मुख अपनों देखन को लाडली
विशाखा को कीन्हीं पुकार !
नीलमणि दर्पण ना दिखावे सखी
सखी विशाखा आन सम्भार !
सखी ने आन पकड़यो दर्पण तब
सजनी मुख को रही निहार !
दर्पण में मुख श्याम को दीखे
सजनी होय रही बलिहार !

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