लफ़्ज़ों से ही इश्क़
लफ़्ज़ों से ही इश्क़ हुआ और लफ्ज़ ही मिले
काश आपसे कभी इश्क़ होता तो आप मिलते
उलझ गयी ये ज़िन्दगी लफ़्ज़ों के दायरे में ही
और मैं आपको लफ़्ज़ों में ही ढूंढती रही
क्यों हुआ ये सब क्यों अनजान हो गयी
कभी लगे खुद के घर में ही मेहमान हो गयी
अजीब से खालीपन के एहसास हैं अब
आपसे दूर हूँ या आप पास हैं अब
नहीं पता अभी कुछ हाल ए दिल अपना
खुली आँखों का कभी सच हुआ कोई सपना
जाने क्यों आँख ने उस ख्वाब की हिमाकत की है
रूह ने आप से अब तक ना मोहबत की है
ए मेरे खुदा ए मेरे मौला ये मुझे गम क्यों है
लब खामोश हैं और आँख ये नम क्यों है
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