जहां भी देखा

जहां भी देखा तेरा ही इश्क़ देखा
जिस और नज़र गयी बस तुम्हें देखा
क्यों मोहबत करते हो यूँ गजब की तुम
गर कहीँ दिल लगा बस तुम्हें देखा

अब नज़र हटती नहीं तुमसे ही
क्यों ख्यालों में तुम यूँ ही बस गए
जितने भी लोग मिलने लगे अब मुझको
हर किसी में ही तेरा चेहरा देखा

यूँ तो भटक रही थी गमों के दौर में ही
जाने तुम किस शक्ल में आते हो
निकाल लेते हो सम्भाल लेते हो
तुम ही तुम हो रौशनी इस ज़िन्दगी में
तुम भी जो भी देखा अँधेरा घना देखा

हाँ गुस्ताख हूँ मैं गलती मेरी फितरत है
जाने क्यों लगा मुझे ही तुझसे मोहबत है
अब देख रही हूँ इश्क़ तेरा हर अक्स में
जहां भी देखा बस इश्क़ तेरा देखा

अब तुझे ही देखूं और देखती ही रहूँ
तेरे सिवा कुछ मेरी नज़र नहीं देखे
इस तरह उतर गए रूह में मेरी
हर ज़र्रे में ही अब अक्स तेरा देखा

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