मेरा सच
आज मैं किसको पुकारूँ किसे आवाज़ दूँ
हाय मैं काबिल ही नहीं की तेरा नाम लूँ
बोलूं तो लगे ऐसे की कांटा कोई गुल को ना छू जाए
हाय मेरे देखने से तुझको कहीँ मैल ना छू जाए
तू तो आफताब है और मेरी औक़ात क्या है
दीदार भी हो तेरा ऐसी भी बात क्या है
हाँ सही है मुझसे कुछ दूर ही रह लो गर तुम
मुझको मेरी बर्बादी के एहसास में ही रहने दो
ये अश्क़ ना धो पाएंगे मैल जन्मों की अब
इनको यूँ ही हर रोज़ बहने दो
मत आना पास कभी ये प्यास भी प्यासी रहे
आये ना कोई हंसी लब पर चाहे उदासी ही रहे
मुझको मेरी औकात हमेशा ही पर याद रहे
भूल भी नही पाऊँ मन में तेरी बात रहे
और एहसास भी रहे की क्यों तू मुझसे दूर है
बन्दा ये काबिल नहीं कितना मगरूर है
और भी अपनी खतायें याद रहें मुझको
और तेरी ही वफायें याद रहें मुझको
हाँ मुझे बस तड़प ही देना उम्र भर की
मैंने जो की हैं जफ़ाएं याद रहें मुझको
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