कलयुग विषय दुःख

कलयुग विषय दुःख अति भारी
कैसो होय मनुष् उद्धारी !
मिल जावे पल को सत्संग ही
विपदा कट ही जावे भारी !
सन्तन को संग पल छिन को ही
मन में भगवत् प्रेम उपजावे !
हरि नाम के प्रभाव सों ही
प्रीत वल्लरी बढ़ती जावे !
मन में होय जब चाह हरि की
सन्तन को हरि आप मिलावे !
सन्तन को संग ही प्राणी में
हरि प्रेम की जोत जलावे !
नमन सभी सन्तन भक्तन को
जिन हरि अपने वस में कीन्हें !
पात्र कुपात्र सन्तन कब देख्यो
प्रेम हरि सों दान जब कीन्हें !

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