क्यों दूर किया

क्यों दूर किया मोहे चरणों से लाडली मैं दासी तेरी
अब मोहे शरण में राखो स्वामिनी देर भई बहुतेरी

जन्मों से मैं दूर हूँ तुमसे प्यारी अब नहीं ठुकराओ
तेरी सेवा करूँ मैं निसदिन लाडली मोहे अपनाओ
तुम ना रखोगी शरण में अपनी कौन सुधि ले मेरी
अब मोहे शरण में राखो स्वामिनी देर भई बहुतेरी
क्यों दूर किया.......

अपने नाम की भिक्षा दे दो दासी की अभिलाषा
तुम ना दो तो और स्वामिनी किसकी रखूं आशा
अपनी बना लो जैसी भी हूँ करो मोहे चरणन चेरी
अब मोहे शरण में राखो स्वामिनी देर भई बहुतेरी
क्यों दूर किया........

मेरे मन के कुञ्ज भवन में हो नित वास तुम्हारा
और जगत मैं भूलूँ सारा हो तेरा नाम प्यारा
तेरी से दिन हो जाए भव की रात घनेरी
अब मोहे शरण में राखो स्वामिनी देर भई बहुतेरी
क्यों दूर किया.......

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