ऑंखें

आज आईने में अपना अक्स देखा
अपनी आँखों को गौर से देखा
ये मुझे अपनी ना लगीं
जैसे इनमें तुम ही हो
एक मुद्दत सी हो चली
खुद को देखे हुए आईने में
अपनी सूरत से ज्यादा
तेरी सूरत देखने की
आदत हो गयी मुझे
ये ऑंखें
अपनी ना लगीं मुझे
ये ऐसी तो ना थीं
आज इनमें क्या था
तेरा अक्स क्यों लगा
पूछ बैठी इनसे
तुम कबसे इतनी खूबसूरत हो गयी
तुम तो ऐसी नहीं थी
बोलीं अब हम दुनिया कम
और उनको ज्यादा देखती हैँ
इसलिए
खूबसूरती देख देख
ऐसे हो गयीं हैं
मैं हैरान हो गयी
और भी हैरान तब हुई
जब मेरी ऑंखें बोली
तुझे जब से इश्क़ हुआ
हम भी तो दो से चार हो गयीं
मुझे आज एहसास हुआ
मेरी ऑंखें बोलीं
मेरी ऑंखें चार हो गयीं
तो पुछा तुम तो दो हो
बोलीं
उनकी दो ऑंखें
भीतर ही समा गयीं
इसलिए अब ऐसी हो गयीं
क्या ऐसे भी होता है
इश्क़ में
मुझे तो कुछ अंदाज़ा भी ना था
वाह रे इश्क़
तू भी कमाल
मेरे साहिब जैसे

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